Exasperation of a “Silenced Critique”…
“ताकि कमान से ना छूटे, उसका अहंकार,
अम़न-ए-वतन खा़तिर, त्याग दिये,
सर्वस्व अधिकार मैंने !
ताकि बना रहे उसका, कद कद्र बरकरार,
अम़न-ए-रिवायतों खा़तिर, परदा किये,
सर्वत्र सरोकार मैंने !
ताकि अन्ततः ज्वलंत रहे, उसकी ज़हरीली हुंकार,
अम़न-ए-जिरह़ ख़ातिर, मौन किये,
समझ, शिष्टाचार मैंने !
ताकि “झमूरीयत” कारोबार के वशीभूत रहे, उसकी जमहूरियत सरकार,
अम़न-ए-विषमता ख़ातिर, बिसरा दिये,
दरिद्रता के हाहाकार मैंने !”
ताकि कालचक्र स्वतः विध्वंस करे, उसकी खोखली दीवार,
अम़न-ए-रूह़ ख़ातिर, समर्पित किये,
ढाल, हथियार मैंने !