आजकल बदलाव की आंधी है,
फै़ली अधीरता की माहामारी है !
सुना है कि अब लोग,
कपड़ों की तरह, किरदार बदल देते हैं!
आवा़म में बेमियादी बेसब्री का आलम है,
कि पाँच सालों में ही बोर होके,
हम अच्छी-बुरी सरकार बदल देते हैं!
ख़ूब सुहावने दिखते हैं, परदेस के ढोल,
कि अब तो उपलब्धि मान के,
देशभक्त भी, अपनी पहचान बदल देते हैं !
ऊँच-नीच के फ़ेर में पड़के,
बेमेल रुतबे के ख़ातिर,
हम सच्चे दोस्त, प्यार, परिवार बदल देते हैं!
इसी बदलाव की भीड़ में कुचल के,
कौड़ियों के दाम पर,
सुना है अब तो लोग, भगवान भी बदल देते हैं!
बस खु़दा की रहमत है,
जो नवाज़िश नहीं, हमें ये वरदान!
शुक्र है, जो नहीं मिला,
हमें मात्-पिता बदलने का अधिकार!
वरना तो…
आजकल बदलाव की आंधी है,
फै़ली अधीरता की माहामारी है !
सुना है कि अब लोग,
कपड़ों की तरह, किरदार बदल देते हैं!
awesome! simply awesome!
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great one!
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Thanks a lot Saurabh. Would look forward to your readership and views !
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